पारस रत्न[i]
हाल के वर्षों मे भारतीय विदेश नीति, शिथिल ‘लुक ईस्ट’ से सक्रिय ‘एक्ट ईस्ट’ की तरफ अग्रसर हो रही है । इसके मद्देनजर भारत, म्यांमार को अपने और दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के बीच में एक कड़ी की तरह देख रहा है । भारतीय सामरिक दृष्टिकोण में म्यांमार की बढ़ती महत्व, दोनों देशों के बीच सुरक्षा व रणनीतिक संबंध का विश्लेषण करना जरूरी है। यह भारत की आंतरिक सुरक्षा व पूर्वी एशिया में इसके कूटनीतिक हितों को प्रभावित करता है । भारत-म्यांमार के रक्षा सहयोग और कूटनीति को तुरंत ही चीन से जोड़ दिया जाता हैं, लेकिन इसका मूल्यांकन इनके द्विपक्षीय संदर्भ में भी किया जाना चाहिए।
भारत और म्यांमार के बीच 1600 किमी की लंबी भूमि सीमा तथा बंगाल की खाड़ी मे समुद्री सीमा है । एक्ट ईस्ट नीति के लिहाज से महत्वपूर्ण राज्य – अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड, मणिपुर, और मिज़ोरम की अंतर्राष्ट्रीय सीमा म्यांमार से लगती है। इनमे से ज़्यादातर राज्य म्यांमार से जातीय व भाषायी संबंध साझा करते हैं। इस जुड़ाव का दुरोपयोग दोनों देशों के अलगाववादी समूह करते है। खुली सीमाओं का फायदा उठाते हुए घटना को अंजाम देने के बाद सीमापार के इलाकों मे छिप जाते हैं । आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से, ये दोनों देशों के लिए चिंता का एक विषय है।
आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, भारत व म्यांमार ने साल 2014 मे सीमा सहयोग संबन्धित सम्झौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया । इसका उद्देश्य विद्रोह, हथियारों की तस्करी , मानव व जीव दुर्व्यवहार के बारे में सूचना साझा करना है , जिससे की दोनों देशों की सुरक्षाबलों को इनको काबू करने में सहूलियत होगी। आतंकवाद, अवैध मछली पकड़ने, मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी जैसे खतरों के मद्देनजर भारत और म्यांमार दोनों नौसेनाएं 2013 से समन्वित गश्ती (IMCOR) का संचालन कर रही हैं। वास्तव में, म्यांमार तीसरा स्थान है जिसके साथ भारत ने समन्वित गश्ती के लिए एक औपचारिक समझौता किया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिससे अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच लंबी समुद्र सीमा में समन्वित गश्ती सुचारु व सुगम हुई है।
हाल के दिनों मे, मिज़ोरम का चांफाई जिला ड्रूग तस्करी के लिहाज से सुर्खियों में रहा है। चांफाई म्यांमार के शहरों विशेष रूप से टिडिम व मंडले से अच्छी तरीके से जुड़ा है। अवैध ड्रूग म्यांमार से चांफाई के रास्ते बांग्लादेश भेजे जाते हैं। इसके अलावा मणिपुर –सागइंग मार्ग भी ड्रूग तस्करी के लिहाज से काफी संवेदनशील मानी जाती है। इन नशीले पदार्थों को चीन सीमा के निकट म्यांमार की शान राज्य के प्रयोगशालाओं मे बनाया जाता है। यह इलाका यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी के नियंत्रण में आता है, ये वा समूह की प्रतिनिधित्व करने वाली एक जातीय अल्पसंख्यक सेना है । ड्रग्स के अलावा, यह भारत के पूर्वोत्तर उग्रवादी गुटों का मुख्य हथियार आपूर्तिकर्ता है। ऐसा माना जाता है कि इसे अप्रत्यक्ष रूप से चीन का समर्थन हासिल है।
उत्तर पूर्व में सक्रिय कई अलगाववादी गुटों के ताल्लुकात म्यांमार के उग्रवादी जातीय सेनाओं से है। नेशनल सोसलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलंग), एक नागा सैन्य गुट अपनी गतिविधियां म्यांमार के सगिंग प्रांत से संचालित करता है, इसके तार भारत के असम और मणिपुर प्रांत के अलगाववादियों से जुड़े हैं। 2015 मे भारतीय सैन्य टुकड़ी पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। जिसमे सेना के डोगरा रेजीमेंट को काफी क्षति पहुंची थी। इसके अलावा भारत के कलादान मल्टी मॉडल परिवहन परियोजना अराकान आर्मी और कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी जैसे गुटों के निशाने पर है।
संवेदनशील होने के बावजूद भारतीय विदेश नीति से संबन्धित संभाषण मे चीन व पाकिस्तान के तुलना में म्यांमार का जिक्र कभी कभी होता है। हालांकि 2015 और 2019 में , कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, एनएससीएन (ख ), उल्फा (आई), और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड जैसे उग्रवादी संगठनों के खिलाफ साझा सीमा-पार सैन्य अभियानों ने म्यांमार को सुर्खियों में ला दिया।
यहां यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि भारत और म्यांमार ने इससे पहले 1995 मे हथियार तस्करी के विरुद्ध साझा अभियान चलाया था। लेकिन हाल के दिनों में दोनों देशों ने सहयोग करने की प्रबल इच्छा दिखाई है। उदाहरण के लिए, इम्बेक्स (IMBAX ) नामक पहला भारत-म्यांमार द्विपक्षीय अभ्यास, 2018 में उमरोई, मेघालय में आयोजित किया गया। इसके अलावा, रक्षा सहयोग को गति देते हुए , भारत ने म्यांमार की नौसेना को 31000-टन की भा॰ नो ॰ से सिंधुवीर नामक पनडुब्बी सौंपी। यह म्यांमार नौसेना की बेड़े मे पहली पनडुब्बी है। भारत, म्यांमार के शीर्ष पाँच हथियार निर्यातकों देश मे से एक है । म्यांमार अपनी सैन्य जरूरतों खासकर प्रसिक्षण और हथियार प्रणाली के लिए लगातार भारत का रुख कर रहा है।
जुलाई 2019 में, म्यांमार के रक्षा बलों के कमांडर-इन-चीफ जनरल जनरल आंग ह्लिंग की यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। म्यांमार के राजनीतिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में देखा जाए तो यह दौरा विशेष महत्व रखता है। नाजुक दौर से गुजर रही म्यांमार की संदर्भ मे, यह भारत सरकार की तातमाडॉ (म्यांमार सेना) और चुनी हुई सरकार के साथ सामंजस्य बैठाने की मंशा दर्शाती है। भले ही राष्ट्रिय लोकतान्त्रिक संघ (NLD) अगुवाई में लोकतन्त्र म्यांमार में पैर जमा रही है, लेकिन प्रमुख विभाग जैसे कि रक्षा, आंतरिक सुरक्षा व सीमा मामलों का मंत्रियों की नियुक्ति करने की शक्ति तातमाडॉ (म्यांमार सेना) के पास है। इस लिहाज से म्यांमार में सेना एक महत्वपूर्ण संस्थान है , जिसको विश्वास मे लिए बिना वहाँ के मुद्दों का स्थायी समाधान नहीं हो सकता । शायद यही वजह है की भारत ने रोहिङ्ग्या प्रकरण पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है। रखाईन प्रांत में हो रहे जातीय हिंसा का क्षेत्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव को देखते हुए, भारत को एक रचनात्मक भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इसके लिए उसे म्यांमार की चुनी हुई सरकार और सेना से तालमेल बिठाना जरूरी है । इन चुनौतियों के आलोक में भारत –म्यांमार रक्षा कूटनीति मानवीय आदर्शों, लोकतान्त्रिक मूल्यों, और रणनीतिक हितों के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित करने की दिशा में किया गया एक प्रयास है।
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[i] पारस रत्न विजन इंडिया फ़ाउंडेशन, नई दिल्ली, में रिसर्च एसोशिएट के पद पर कार्यरत हैं।