चीन की विदेश नीति और डोकलाम
प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी ने सभी देशों के साथ कूटनीतिक तौर पर अच्छे सम्बन्ध बनाने की कोशिस की है। इस कड़ी में पहले ही साल में चीनी प्रेसिडेंट Xi जिनपिंग को आमंत्रित कर अच्छे रिश्ते बनाने की भरपूर कोशिस की। मोदी जी का यह प्रयास प्रशंसनीय था। जैसे-जैसे दूसरे देशों के साथ भारत के सम्बन्ध अच्छे होते गए , और आर्थिक विकास तेज होने लगा, भारत एशिया में महाशक्ति बनने की और अग्रसर होने लगा, चीन इस प्रक्रिया को रोकने की कोशिश करने लगा। चीन कभी पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) के नाम पे और दूसरे देशों में वन बेल्ट एंड वन रोड (OBOR) के नाम पे भारत को घेराबंदी करता रहा है। और यह सब चीन की विस्तारवादी निति का हिंसा रहा है।
चीन और रूस की सीमा 4300 किमी लंबी है। उसूरी नदी पर स्थित झेनबाओ द्वीप और एमर व एर्गन नदी पर बसे कुछ द्वीपों के मालिकाना हक को लेकर चीन और रूस के बीच कई साल से विवाद है। 1995 और 2004 में समझौते के बाद भी चीन इस मसले को बीच बीच में उठाता रहता है। दुनिया में रूस के बाद चीन एक ऐसा देश जिसकी सीमाएं 14 देशों से सटी हुई हैं। लेकिन पाकिस्तान को छोड़कर और किसी देश से उतनी चीन की किसी से नहीं बनती है। चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर पर स्थित कुछ द्वीपों को लेकर विवाद है। जापान नियंत्रित सेनकाकू द्वीप पर चीन अपना हक जताता है। वह इसे डियाओयू द्वीप कहता है। इन द्वीपों पर ताइवान भी अपना अधिकार जताता है। ताइवना पर चीन शुरू से ही अपना हक जताता है। इसके अलावा चीन की तरफ से अक्सर ये बयान आता है कि ताइवान से रिश्ता रखने वालों देशों के साथ वो संबंध तोड़ देगा। चीन और उत्तर कोरिया के बीच सीमा रेखा को लेकर विवाद है। हालांकि दोनों देश आर्थिक और राजनीतिक मित्र हैं लेकिन हल्का सा तनातनी बनी रहती है। चीन की विस्तारवादी निति से मंगोलिया, लाओस, वियतनाम, म्यांमार, अफगानिस्तानस कजाखिस्तान, किर्गिस्तान ताजिकिस्तान के साथ आर्थिक सम्बन्ध अच्छे होते हुए भी चीन के इरादों पे किसी को भरोसा नहीं है। दक्षिण चीन सागर पर चीन एकछत्र राज करना चाहता है। वहां वो कृत्रिम द्वीपों का निर्माण भी कर रहा है। इस क्षेत्र के अलग अलग हिस्सों पर मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और ब्रुनेई जैसे देश भी अधिकार जताते हैं।
शुरू से चीन की यह कोसिस रही की भारत के जो पडोसी देश है, जो की भारत के बॉडर को एक तरह से प्रोटेक्ट करते है। उसे किसी तरह अपने साथ मे मिलाया जाय। तिब्बत को लेकर चीन हमेशा से ही काफी चौकस रहता है। इसकी असली वजह यह है कि तिब्बत के कुछ लोग यह मानते है की तिब्बत उसका धोखे से कब्जाया हुआ क्षेत्र है। तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से कई बार युद्ध किया, लेकिन हर बार ही उसको हार का सामना करना पड़ा था। इसके हर्जाने के तौर पर तिब्बत को हर वर्ष नेपाल को 5000 नेपाली रुपया बतौर जुर्माना देने की शर्त भी माननी पड़ी थी।[1] लेकिन जल्द ही तिब्बत इस हर्जाने से दुखी हो गया और इससे बचने के लिए चीन से सैन्य सहायता मांगी, जिससे नेपाल को युद्ध में हराया जा सके। चीन की मदद के बाद तिब्बत को नेपाल को दिए जाने वाले हर्जाने से छुटकारा तो मिल गया । लेकिन उसके बाद चीन तिब्बत पर अधिकार करने लगा। १९४५-१९५० मे जब कम्युनिस्ट क्रांति हुई[2], उस समय तिब्बत के लोग तिब्बत को एक स्वतंत्र देश मानते थे, जब कम्युनिस्ट शासन चीन में स्थापित हुआ, तो तिब्बत में दलीलामा की लोकप्रियता पसंद नहीं आ रहा था तब चीन ने वहा चीनी नागरिको को भेज कर बसना सुरु किया। चीन आक्रामक रुख के कारण ३० मार्च १९५९ में दलाईलामा[3] और उसी समय में ८० हजार लोगो को तिब्बत छोड़ कर भारत मे शरण लेना पड़ा। और अब चीन ने उस पर कब्ज़ा कर लिया है। चीन ने भारत के बड़े भूभाग मे १९६२ से पहले ही अक्साई चीन में रोड बना बना दिया था। तभी भी भारत ने दोस्ती की नाम पे संयम बरतता रहा। चीन यही नहीं रुका ओर १९६२ में भारत के साथ युद्ध भी किया। चीन सीधे तोर पे कही ना कही पीछे से छिप कर ऐसे एजेंडा चलता रहता है। जिस से चीन की विस्तारवादी निति कायम रहे। हम नेपाल की बात करे तो वह भी एक स्वतंत्र राजशाही मुल्क था पर अपरोक्छ तोर पे चीन ने वहां माओ वाद को सपोर्ट किया। नेपाल में चीन आर्थिक निवेश कर रहा है। वहां सड़कें और रेल बिछा रहा है। आज तक वहां एक स्थायी सरकार नहीं बन पाई , और जो भी सरकार बानी अपरोक्छ तोर पे चीन के सहयोग से शायद जिसके कारण नेपाल चीन की भावनाओं को दरकिनार नहीं कर सकता। हाल के दिनों में ही उसे OBOR की हामी भरनी पड़ी और नेपाल मे चीनी डैम के निर्माण का इजाजत भी देने पड़ी जो अब जनता को इसके बदले टेक्स के रूप में चुकानी पड़ रही है, डीजल और पेट्रोल पे ५ रूपया इंफ्राटेचेर डेवलोपमेन्ट चार्ज लगाने की बात सामने आई है।[4]
पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर का एक हिंसा चीन को गिफ्ट कर दी और दोनों दोस्त बन गए। चीन और पाकिस्तान के रिश्ते आज मजबूत है। कश्मीर में पाकिस्तान आतंकवादी गति विधिया चलता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के अध्यक्ष को सपोर्ट चीन करता है जैसे की हिज्बुल चीफ सैयद सलाउद्दीन। भारत के लाख मना करने के बाद भी चीन पाकिस्तान की सहायता से विवादित कश्मीर में अपनी आर्थिक प्रगति के लिए डेवलोपमेन्ट कर रहा है जो की भारत का एक भूभाग है। डेवलोपमेन्ट के लिए जो कर्ज चीन दे रहा है, सायद ही पाकिस्तान उतार पाय। देखा जाए तो चीन यही नहीं अफगानिस्तान में तालिबान जैसे उन्मादी तत्वों को आपरोक्छ तोर पे सहायता करता है क्यों की इश्से फायदा चीन को ही होगा। यहाँ तक कजाकिस्तान को भी चीन के कर्ज के कारण कई कंपनियों का स्वामित्व चीन को देना पड़ा।[5] भारत को चारो तरफ से घेरे में लेने के चकर में चीन मालदीव जैसे छोटे दीप को भी नहीं छोड़ा। मालदीप में पोर्ट बनाने के लिए पिछले साल कर्ज दे कर एक तरह से दबदबा बना रखा है। जो की मालदीव जैसे छोटे देश शायद ही कभी लौटा पाए।
यही सब कुछ श्रीलंका के साथ देखने को मिलता है। पहले दोस्ती की फिर कर्ज दे कर पोर्ट बनाया जो की श्रींलंका की सरकार चूका नहीं सकती थी, अंत में श्रींलंका सरकार पोर्ट को की स्वामित्व वाली कम्पनी को बेचना पड़ा। जो चीन ने आश्वासन पोर्ट से कमाने का दिया, एक रुपया भी नहीं आया। बांग्लादेश के साथ भी यही हो रहा है चीन ने पोर्ट बनाने के लिए बांग्लादेश सरकार को कर्ज का ऑफर दिया है। सायद उसका भी श्रीलंका जैसा हाल ना हो। म्यांमार में भी आजादी के बाद अंदरूनी तौर पर उन्मादी तत्वों को बढ़ावा चीन ने ही दिया। लम्बे समय से सैनिक शासन रहा जो एक तरह से चीन के इशारे पे चलता रहा। अब जा कर थोड़ा वहां शांति स्थापित हो पाया है। कई सारे रिपोर्ट से पता चलता है कि अभी भी चीन अंदरूनी तौर पर उन्मादी तत्वों को आपरोक्छतोर पर सहायता करता है। उसने भारत के क्षेत्र मे भी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नागालैंड (NSCN) जैसे प्रतिबंधित संगठन को बढ़ाया जिस से असम, नागालैंड बुरीतरह प्रभावित रहे है। और उसे तोड़ने की कोसिस करता रहता है। भूटान जैसे छोटे देश पे भी दबाव बनता रहता है। भूटान को भारत हर तरह से सहायता करता है। और चीन के चाल से बचने की कोसिस करता है। भारत चीन की घेरा बंदी में नहीं रहना चाहता है, जैसे ही भारत ने सबसे पहले अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताकर चीन के अति महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट एंड वन रोड (OBOR) में हिस्सा नहीं लिया। इसके अलावा, पाकिस्तान को बाइपास कर भारत पड़ोसी देश अफगानिस्तान से सीधे जुड़ने के लिए एयर फ्रेट कॉरिडोर बनाया। इतना ही नहीं, जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ नरेन्द्र मोदी ने रिश्तों में गर्मजोशी दिखाई, वह भी चीन को परेशान करनेवाली है। इतना ही नहीं, चीन लगातार दक्षिण चीन सागर पर अपना एकाधिकार जता रहा है। लेकिन, अमेरिका ने उसका खुलेआम विरोध किया है। ऐसे में दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका और जापान के साथ भारत का आना दक्षिण एशिया में चीन के लिए मुश्किल खड़ी करने वाला कदम है। जो कुछ पिछले दिनों से चल रहा है वह चीन की चीड़ को दिखता है।
चीन ने भारतीय क्षेत्र में भारत के दो पुराने बंकर को तोड़ दिया।[6] कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी नहीं करने दी। यहाँ तक की भूटान के कुछ भूभाग को आपने बताने लगा है। और वह सड़क बनाने मे लगा है। तिब्बत के कुछ हिस्सों को लेकर भूटान और चीन में तनातनी है। मौजूदा समय में भूटान के डोकलाम में चीन हस्तक्षेप कर रहा है। भारत और भूटान के साथ हमारा संधि ऐसे है कि हम उसे हर तरह से सहयोग करेंगे उसमे सैन्य सहयोग भी है। भारत के इसके रोकने पे उसके विदेश मंत्री भी आगे आ कर धमकी भरी बाते करने लगे है। और १८९० की ब्रिटिश संधि हवाला देने लगे है। सिक्किम के डोकलाम से भारतीय सैनिकों को हटाने की शर्त रखी है, यह बात छिपी नहीं है की भारत चीन की सिमा निर्धारित नहीं है यही उसका चीन फायदा उठता है और हर समय नया नक्सा निकलता है। और दूसरे देश का भूभाग आपने में दिखता है। अगर भारत भी पुराने समय की हवाला दे तो भारत के बेद मे कैलाश पर्वत तक भारत का भाग रहा है। भारत हमेशा से शांतिप्रिय देश रहा है कभी भी यह मुदा भारत ने नहीं उठाया। भारत ने हमेशा चाहा है शांतिपूर्ण तरीके से वार्ता कर मामलो को सुलझा लिया जाय। लेकिन चीन अब इतना सब कुछ के बाद धमकाने पे लगा है। और बात तक करने को राजी नहीं है। जबकि भारत का कोई भी मंत्री सयम से बात कर रहे है। युद्ध किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं होता है सायद तीसरे देश को ही फायदा होता है। इस लिए दोनों देसो को संयम से काम लेना चाहिय और बार्ता कर के इन मामलो का हल ढूढ़ना चाहिए। दूसरे देश को भी इन सब से सीखने की जरूरत है की डेवलोपमेन्ट कर्ज ले कर वहां की लोगो की जरुरत के हिसाब से हो ना की दूसरे देश के लिए डेवलोपमेन्ट जरुरत से ज्यादा अथवा कर्ज ले कर हो और आने वाली पीढ़िया भी गुलाम हो जाय दूसरे देश की।
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[1] http://www.shortheadline.com/World/Tibet-had-historically-forgotten-and-China-had-taken-possession-of-it-on-it/3685
[2] https://history.state.gov/milestones/1945-1952/chinese-rev
[3] http://time.com/3742242/dalai-lama-1959/
[4] https://thehimalayantimes.com/business/govt-collects-rs-2-5bn-infrastructure-tax-petro-products/
[5] http://news.bbc.co.uk/1/hi/world/asia-pacific/6935292.stm
[6] http://www.deccanchronicle.com/nation/current-affairs/260617/chinese-troops-enter-india-via-sikkim-sector-destroy-2-bunkers.html
-राज कुमार शाही , भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER)